Thursday, March 8, 2012

फर्म की मालकिन का लड़का


-हिमांशु राय


"अभी क्या हुआ कि मालकिन का लड़का बड़ा हो गया। सीधा साधा है। मालकिन ने सोचा है कि आगे से फर्म का काम भैया सम्हालेंगे। आप सब लोग बढिया मेहनत करो। तो हमें कौन बुराई है। भैया खूब आगे बढ़े फर्म सम्हालें। न हमारी फर्म है न हम फर्म के मालिक। आप लोग हाई कमान हो। जैसा कहो। हमें आपने कभी इस लायक बनने नहीं दिया कि हमारे कारण फर्म का साबुन बिके। आपकी फर्म आपका मुनाफा। हम तो मालिकों का हुकुम मानते हैं। नौकर आदमी।"
ब क्या है कि साहब हम तो इसी फर्म में काम करते करते बूढ़े हो गये। तरक्की भी हुई। ऐसा नहीं है कि बस निचले दर्जे के कार्यकर्ता बने रहे। शुरू में तो सबकोई छोटे दर्जे वाले ही रहते हैं। फिर धीरे धीरे फर्म में पकड़ बढ़ाई। कामधाम समझ में आया तो फिर राह निकलती गई। छोटे से कार्यकर्ता से आज फुल साइज नेता हैं। इलाके में पकड़ है। पकड़ है मतलब हम लोगों का काम करा देते हैं। सेवा भाव। लोग मानते हैं। अब तो उम्र ज्यादा हो गई है तो उसका भी फायदा मिलता है। वरिष्ठ नेता।

वरिष्ठ नेता हैं तो लोग उम्मीद करते हैं कि हमको पूछा जाए। हमसे सलाह ली जाए। मगर अपने को ऐसी कोई गलतफहमी नहीं है। अपने को मालूम है कि नौकर नौकर होता है। मालिक मालिक होता है। अपने को ये भी मालूम है कि अपने को कभी मालिक बनना नहीं है। मालिक बनने की कोशिश करोगे तो नौकर भी न रह पाओगे। तो अपनी इसी साफ समझ का नतीजा है कि अपने हाथ में लड्डू ही लड्डू हैं। कमा रहे हैं। इतना कमा चुके हैं कि सात पीढ़ी खा सकती हैं मगर आप कभी हमारी हालत देखो ऐसा लगेगा कि दस पांच रूपये दान कर दो। बेचारा है। ये तरीका है। दीन हीन बने रहने से ही आदमी विश्वासपात्र बन पाता है। जब तक बड़े आदमी के सामने छोटे नहीं बनोगे तब तक बड़े आदमी को कैसे लगेगा कि वो बड़ा आदमी है ?
अब आपको अपनी फर्म की बात बतायें। फर्म पुरानी है। जिनकी थी वो कबके मर खप गये। उनके जमाने में तो फिर भी कुछ पुराने लोगों की पूछ थी। फिर नए लोगों ने फर्म सम्हाली। नए लोगों ने फर्म बनायी तो थी नहीं उन्हें तो बनी बनाई मिली। तो उन्हें लगा कि फर्म चलाने का मतलब है फर्म में काम करने वाले सारे नौकर चाकरों को हांको और काम कराओ। किसी को पुचकार दो किसी को फटकार दो। तो साहब ये दौर भी चलता रहा। नए मालिकों को भी लगा कि ये तो अच्छा है। ये नौकर लोग तो चीं नहीं बोलते। चाहे जो करो भागते भी नहीं हैं और मन लगा कर काम करते हैं। ऊपर से दिनरात मालिकों का जिन्दाबाद बोलते हैं। कभी कभी इक दुक्का लोगों का जमीर जाग गया। उन्हें आत्मसम्मान की सूझने लगी। फर्म छोड़कर बैठ गये। किसी ने अपनी खुद की फर्म डाल ली। साल दो साल चली फिर माफी आफी मांग के वापस आ गये। हमारी फर्म की एक खास बात है। रूठे को मनाते नहीं और लगे तो एकाध धक्का और दे देते हैं मगर माफी मांग ले तो माफ भी कर देते हैं।

साहब बड़ी फर्म है। पूरे देश में ग्राहक हैं। पूरे देश में सेल्समैन हैं। कभी किसी स्टेट में कब्जा हो जाता है तो कभी किसी स्टेट से छूट भी जाता है। पहले तो पूरे देश में एक छत्र राज्य था जनाब। हम सबके जलवे थे। फिर फर्म की पालिसी में कुछ फेर बदल हुआ तो जनता को लगा कि नई फर्मों को मौका देना चाहिए। तो जब से ये अलग अलग राज्य बने और हमारे मालिक लोगों की पकड़ कमजोर हुई। समय के साथ अपने को बदला नहीं तो हो गई दुर्गत। अब जिनको दरवाजे में खड़े नहीं होने देते थे उनके साथ साझेदारी फर्म बनाना पड़ रही है। दो कौड़ी के लोग अब ठाठ के साथ हमारे मालिकों के साथ बैठते हैं और वो कुछ नहीं कर पाते। अब यही तो होता है साहब यहां धंधा बिगड़ा उधर ग्राहक भागा। जो हमारे ग्राहक थे जो हमारे सेल्समैन थे वो दूसरों का मंजन बेच रहे हैं। हमी को धंधा सिखा रहे हैं। अब हम नौकर लोग समझते सब हैं मगर क्या करें किसके सामने रोना रोयें। सामने देख रहे हैं कि फर्म की लुद्दी सुट रही है मगर चुप हैं। क्या करें।

मगर साहब अपने देश की ग्राहकी भी अजीब है। एक बार उसी साबुन को मना कर देंगे दूसरी बार उसी साबुन से घिस धिस के नहाएंगे। वाह रे देश। आप तो जानते हैं कि दो बार हमारी फर्म की दुकान में ताला लग चुका है। मगर फिर हमारी फर्म चल निकली। बस कुछ नहीं। हमारी मालकिन घर से निकलीं। उनने कहा देखती हूं कैसे हमारा साबुन नहीं बिकता। अरे साहब क्या बताएं आपकों जनता तो टूट पड़ी। हम खरीदेंगे हम खरीदेंगे। अब हम सब सेल्समैन लोग भी भौंचक। अरे वाह यार अपनी फर्म तो फिर चल गई। बस फिर क्या था हम लोगों ने भी अपनी दुकानें खोल लीं। ग्राहक आने लगे।

अभी क्या हुआ कि मालकिन का लड़का बड़ा हो गया। सीधा साधा है। मालकिन ने सोचा है कि आगे से फर्म का काम भैया सम्हालेंगे। आप सब लोग बढिया मेहनत करो। तो हमें कौन बुराई है। भैया खूब आगे बढ़े फर्म सम्हालें। न हमारी फर्म है न हम फर्म के मालिक। आप लोग हाई कमान हो। जैसा कहो। हमें आपने कभी इस लायक बनने नहीं दिया कि हमारे कारण फर्म का साबुन बिके। आपकी फर्म आपका मुनाफा। हम तो मालिकों का हुकुम मानते हैं। नौकर आदमी।

हमने भी कहना शुरू कर दिया है कि भैया ही फर्म के मालिक बनें। वो हमें सिखायें कि साबुन कैसे बेचें। हमें उनका मार्गदर्शन चाहिए। हम उनके दिखाए रास्ते पर चलेंगे।चमचागिरी की हद है भैया। हमें तो अपने पर शर्म आती है मगर क्या करें हमारी रोजी रोटी तो फर्म से है। तो भैया जी जिन्दाबाद।

लेखक वरिष्ठ रंगकर्मी व इप्टा के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं। आपसे himanshuraijbp@gmail.com के जरिये संपर्क किया जा सकता है। यह रचना लेखक के ब्लाग http://apnikahi.blogspot.in/2012/03/blog-post.html?spref=fb से साभार ली गयी है।

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