Monday, May 28, 2012

झांसी में जन संस्कृति दिवस


झाँसी- 25.05.2012- ‘‘इप्टा का आन्दोलन कला और कलाकार के माध्यम से प्रारम्भ हुआ और जनता तक पहुँचा, इप्टा की कला लोगों के लिए है, इप्टा का रंगमंच लोक का रंगमंच है। भारतीय रंगमंच का इतिहास इप्टा के इतिहास के बगैर अधूरा है।’’ उपरोक्त विचार अखिल भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की स्थापना के 70वें वर्ष एवं इप्टा के संस्थापक सदस्य व मशहूर फिल्म अभिनेता स्वर्गीय बलराज साहनी जी की जन्मशती के मौके पर भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) झाँसी इकाई के तत्वाधान में राजकीय संग्रहालय, झाँसी के सभागार में जनसंस्कृति दिवस के अवसर पर ‘‘इप्टा आन्दोलन के 70 वर्ष व भारतीय रंगमंच का वर्तमान’’ विषयक संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रुप में सम्बोधित करते हुए पूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षिका व प्रगतिशील लेखक संघ झांसी की सचिव डॉ0 अनामिका रिछारिया ने व्यक्त किये।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता व वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी मोहन नेपाली ने अपने सम्बोधन में कहा कि प्राचीन काल से ही भारत में रंगमंच विधा के माध्यम से नाटकों का मंचन होता रहा है। बुन्देलखण्ड में लोककला के माध्यम से जनजागरण का भी काम होता था। वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यास झांसी की रानी में तत्कालीन रंगमंच के दर्शन होता है, जिसका प्रमाण झांसी के किले में देखा जा सकता है। जिस समाज में साहित्यकारों व कलाकारों
की अनदेखी होती है, वह समाज संवेदनहीन हो जाता है, अतएव हमें कलाकारों की अनदेखी नहीं करनी चाहिये।

गोष्ठी को इप्टा झांसी के संरक्षक हरगोविन्द कुशवाहा तथा राजकीय संग्रहालय, झांसी के कार्यवाहक निदेशक गिरिराज प्रसाद व उमेश शुक्ला ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर इप्टा झाँसी द्वारा झाँसी शहर के रंगमंच के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने हेतु श्री नाथूराम साहू कक्का को इप्टा इकाई अध्यक्ष डॉ0 मोहम्मद इकबाल खान द्वारा, वयोवृद्ध रंगकर्मी राधाकृष्ण मिश्रा को इप्टा इकाई उपाध्यक्ष डॉ0 संदीप आर्य व इकाई संरक्षक हरगोविन्द कुशवाहा द्वारा, रंगकर्मी अभिलाषा सक्सेना को प्रलेस सचिव डॉ0 अनामिका रिछारिया तथा श्रीमती शशिप्रभा मिश्रा द्वारा तथा वरिष्ठ रंगकर्मी रामस्वरुप चक को प्रलेस संरक्षक दिनेश बैस व सन्तराम पेण्टर द्वारा जनसंस्कृति सम्मान से भी विभूषित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इप्टा झांसी इकाई के अध्यक्ष डॉ0 मोहम्मद इकबाल खान ने कहा कि इप्टा ने अपने जन्म से ही साफ कर दिया था कि कला सिर्फ कला के लिए नहीं, बल्कि जीवन के लिए हो, बंगाल का अकाल हो या आजादी की लडाई या मजदूर-किसानों का संघर्ष, इप्टा ने हमेशा आगे बढ़कर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया है। इप्टा ने घोषणा की कि ‘‘कला की असली नायक जनता है।’’

कार्यक्रम का प्रारम्भ इप्टा रंगकर्मियों द्वारा इप्टा गीत ‘‘बजा नगाडा शान्ति का’’ से हुआ। तत्पश्चात महासचिव डॉ0 मुहम्मद नईम द्वारा इप्टा आन्दोलन के 70 वर्षों के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इप्टा की स्थापना 25 मई 1943 को बंगाल के अकाल की विभीषिका के बाद मुम्बई में हुआ, इसके पहले अध्यक्ष एन.एम.जोशी तथा महासचिव अनिल डी. सिल्वा थी। इप्टा यानि भारतीय जन नाट्य संघ नाम सुझाया देश के सुप्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक डॉ0 होमी जहांगीर ने तथा इप्टा का निशान नगाडा बजाता हुआ आम आदमी, मशहूर चित्रकार चित्त प्रसाद बसु की पेंटिग ‘‘दि कॉल ऑफ द ड्रम्स’’ से लिया गया। इप्टा रंगकर्मियों तनीषा, अनुरुद्ध, तरुण द्वारा इप्टा सचिव देवदत्त बुधौलिया के निर्देशन में मूक नाटिका का भी मंचन किया गया, जिसके माध्यम से रंगकर्मियों समाज में व्याप्त नशा की समस्या के दुष्प्रभावों का संदेश देने का प्रयास किया। कार्यक्रम के अन्त में इप्टा झांसी इकाई के अध्यक्ष डॉ0 मो0 इकबाल खान व मुख्य अतिथि डॉ0 अनामिका रिछारिया द्वारा पन्द्रह दिवसीय ग्रीष्मकालीन द्वितीय निःशुल्क नाट्य कार्यशाला के उद्घाटन की घोषणा की। कार्यशाला प्रतिदिन सांयकाल 05 बजे से 07 बजे तक राजकीय संग्रहालय के प्रांगण में आयोजित की जायेगी।

कार्यक्रम का संयुक्त संचालन इप्टा झाँसी इकाई महासचिव डॉ0 मुहम्मद नईम व कोषाध्यक्ष अर्जुन सिंह चांद द्वारा तथा आभार देवदत्त बुधौलिया द्वारा व्यक्त किया गया। इस अवसर पर समाज कल्याण बोर्ड की पूर्व सदस्या श्रीमती शशिप्रभा मिश्रा, मार्ग श्री संस्था के निदेशक ध्रुव सिंह यादव, कृषि वैज्ञानिक डॉ0 इकबाल हाशमी, अमीनउद्दीन, महमूद राही, सन्तोष गोयल, डॉ0 रमेश कुमार, नेहा मिश्रा, राधाकान्त, दिनेश बैस, मुकेश सिंघल, सुनील कुमार, आतिफ इमरोज, असगर रजा, वीरु वर्मा, धीरेन्द्र कुमार, मयंक श्रीवास्तव, आमिर अली, तलत खान, नावेद खान आदि साहित्यकार, रंगकर्मी, बुद्धिजीवी व कलाप्रेमी उपस्थित थे।

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