Saturday, October 20, 2012

जनपक्षीय कला का विकास जनपक्षीय आंदोलन के साथ


भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा), मध्य प्रदेश का आठवां राज्य सम्मेलन, 1-2 अक्टूबर 2012

‘आज बाज़ार में पाबजौलाँ चलो’ फैज की यह पंक्ति इप्टा मध्य प्रदेश के दो दिन के सम्मेलन के हर क्षण में समायी हुई लग रही थी। जब देश में किसान और मजदूर मर रहे हैं, औरतें-बच्चे और बुजुर्ग न सम्मान हासिल कर पा रहे हैं न प्यार। हर जगह इंसान को उपभोक्ता बनाया जा रहा है तब कलाकार और वह भी इप्टा का कलाकार कैसे खामोश रह सकता है। इंदौर में प्रदेश के अनेक कलाकार अपने वक्त में अपनी सार्थक भूमिका की बात करते हुए बंद कमरे से सड़कों तक पर और दीवारों से मंच तक आये थे। और सम्मेलन की समाप्ति के बाद एक उत्साह सभी में दिख रहा था - समाजवाद के सही रास्ते पर होने का और सामूहिकता की ताकत का।

भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा), मध्य प्रदेश का आठवां राज्य सम्मेलन 1-2 अक्टूबर, 2012 को इन्दौर में संपन्न हुआ। यह सम्मेलन प्रख्यात अभिनेता व रंगकर्मी बलराज साहनी व ए.के. हंगल के अवदान और स्मृति को समर्पित था। सम्मेलन स्थल पर 40 के दशक में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के फोटोग्राफर रहे सुनील जाना के छायाचित्रों, जिनमें आजादी से पहले के किसानों, मजदूरों, संस्कृतिकर्मियों और आंदोलनों की छवियां दर्ज हैं, के अलावा उसी कालखंड के महान चित्रकार चित्तप्रसाद के चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। भगतसिंह पर केन्द्रित पोस्टरों की अशोक दुबे द्वारा तैयार प्रदर्शनी और समकालीन कविता और कहानी के अंशों पर एकाग्र पंकज दीक्षित द्वारा तैयार किए गए पोस्टर भी इस प्रदर्शनी का हिस्सा थे।

सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन तो एक अक्टूबर की शाम को आनंद मोहन माथुर सभागार में हुआ लेकिन वैचारिक सत्र की शुरुआत प्रातः 10 बजे राखोड़िया की धर्मशाला में हो गई थी। इस सत्र में ‘नाटक और जन आंदोलन’ विषय पर आधार वक्तव्य देते हुए इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव जितेन्द्र रघुवंशी ने कहा कि ‘जनपक्षीय कला का विकास जनपक्षीय आंदोलन के साथ-साथ ही होता है‘। उन्होंने इप्टा के संघर्ष के दिनों को कई उदाहरणों के साथ याद करते हुए कहा कि 1985 के बाद देशभर में जो काम हुआ है, उसकी भी पड़ताल होनी चाहिए। आज के इप्टाकर्मियों को भी अपने अनुभव लिखने चाहिए।’ हिंदी के कवि कुमार अंबुज ने जन आंदोलनों में मध्य वर्ग की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘पिछले बीस-पच्चीस सालों में जो नया मध्य वर्ग उभरा है उसके पास खोने के लिए बहुत कुछ है; यही मध्य वर्ग आज के दौर के जन आंदोलनों को लीड कर रहा है, इस द्वैत को समझने की जरूरत है।’ नाटक व जन आंदोलन के सहअस्तित्व का जिक्र करते हुए रंगकर्मी और फिल्म पटकथा लेखक अशोक मिश्र ने कहा कि ‘आज के समय में नाटक से कलाकारों का जीवकोपार्जन होना चाहिए और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके हमे नाटक को जन आंदोलन से जोड़ना चाहिए।’

इसी संदर्भ में ईश्वर दोस्त ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ‘नाटक खुद अपने आप में जन आंदोलन है।’ उन्होंने आगे कहा कि ‘आज नाटक को लगातार गैर राजनीतिक बनाया जा रहा है।’ इप्टा को आज संस्कृति की राजनीति करने की जरूरत है।’ युवा कवि बसंत त्रिपाठी ने इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ’हमें इस बात पर भी नजर रखनी होगी कि हमारे दौर की तमाम शक्तियाँ, जो खतरनाक हैं, क्या हमारे दौर की कला उन्हें उघाड़ने की कोशिश कर रही है?’ विनीत तिवारी ने कहा कि इप्टा ने हमें यह संस्कार दिये हैं कि जो हाथ रोटी बेलते हैं, हल चलाते हैं, मेहनत करते हैं वे ज़रूरत पड़ने कलात्मक काम भी कर सकते हैं चाहे वह नाटक हो या अन्य कला। उसी तरह कलात्मक संघर्ष में शरीक हैं वे वक्त पड़ने पर उसी कला को आंदोलन का औजार भी बना सकते हैं। छत्तीसगढ़ इप्टा से आये राजेश श्रीवास्तव व झारखण्ड इप्टा से आये उमेश नजीर ने भी जनांदोलनों के साथ इप्टा को नजदीक लाने की जरूरत पर जोर दिया। इस सत्र में नूर जहीर, शैलेन्द्र शैली, विजय दलाल, शिवेंद्र शुक्ला और जितेंद्र शर्मा ने भी अपने विचार रखते हुए विषय से जुड़े कई बिंदुओं पर चर्चा की। सत्र का संचालन इप्टा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष हिमांशु राय ने व अध्यक्षता इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह ने की। सत्र समाप्ति से पहले सुश्री रामदुलारी शर्मा के नाटक ‘जालियाँ वाला बाग’ पुस्तक का विमोचन हुआ। इस वैचारिक सत्र के उपरांत प्रांजल श्रोत्रिय के निर्देशन में इंदौर रंगकर्मी साथियों ने कविता कोलाज की नुक्कड़ प्रस्तुति दी। इस सत्र में वरिष्ठ ट्रेड यूनियन नेता वसंत शिंत्रे, प्रख्यात कहानीकार महेश कटारे आदि की विशिष्ट उपस्थिति रही।

शाम चार बजे धर्मशाला से प्रमुख आयोजन स्थल आनंद मोहन माथुर सभागार जिसे हबीब तनवीर परिसर का नाम दिया गया था, तक एक जनगीत रैली निकाली गई। रैली का नेतृत्व प्रखर व वयोवृद्ध वामपंथी नेत्री कॉमरेड पेरीन दाजी, इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रणवीर सिंह, राष्ट्रीय महासचिव जितेन्द्र रघुवंशी, प्रदेश अध्यक्ष श्री हिमांशु राय, प्रदेश महासचिव श्री हरिओम राजोरिया, प्रलेसं के प्रदेश महासचिव विनीत तिवारी तथा श्रम संगठनों व अन्य प्रगतिशील संगठनों के पदाधिकारियों ने किया। रैली में पूरे प्रदेश व देश के विभिन्न हिस्सों से आए रंगकर्मी, लेखक, कलाकारों के साथ स्थानीय संस्कृतिकर्मी, श्रमिक, महिलाएं व छात्र शामिल थे। रैली में गुना, अशोकनगर, इंदौर, छतरपुर के साथियों ने जनगीत गये और साम्राज्यवाद व साम्प्रदायिकता के खिलाफ नारे बुलंद किए। इंदौर इप्टा ने यह रैली जानबूझकर ऐसे क्षेत्र में रखी थी जो कभी वामपंथी मजदूर राजनीति का मज़बूत गढ़ हुआ करता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जहाँ साम्प्रदायिक राजनीति ने अपनी जड़ें जमा ली हैं। वर्षों बाद उस क्षेत्र में प्रगतिशील ताक़तों की एक प्रभावशाली रैली निकलने से क्षेत्र की जनता को भी सुखद आश्चर्य हुआ और बहुत से पुराने कॉमरेड अपने आप ही रैली में शरीक हो गए। रैली में चल रहे कलाकार कार्यक्र्रम स्थल पर पहुँचने तक जोश व उत्साह से भरे हुए थे। कार्यक्र्रम स्थल पर प्रख्यात रंगकर्मी सुश्री कीर्ति जैन और इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह ने जब मशाल जलाकर मध्य प्रदेश इप्टा के इस आठवें राज्य सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन किया तो यह जोश कई गुना बढ़ गया और काफी देर तक नारों और ढोल-ढमाकों से माहौल गूँजता रहा। ।

इन्दौर इप्टा के वरिष्ठ साथी व स्वागत समिति के अध्यक्ष आनंद मोहन माथुर ने सम्मेलन में शामिल सभी रंगकर्मियों, कलाधर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि हम लोग 1950 के दौर में इप्टा में सक्रिय थे। आज साठ साल लंबे अंतराल के बाद इप्टा में नये, युवा, सक्रिय और प्रतिबद्ध लोगों और इतनी शाखओं का विस्तार देखकर जीवन के कुछ हिस्से में सार्थकता का संतोष होता है। नजीर अकबराबादी की नज्म ‘आदमीनामा’ के साथ उत्पल बैनर्जी ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों का शुभारंभ किया।

सोशल मीडिया और वर्चुअल स्पेस आज लोगों को वैचारिक रूप से प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और निश्चय ही जन आंदोलन भी इससे अछूते नहीं हैं। इस वर्चुअल स्पेस से जुड़कर लोगों के बीच इप्टा का वैचारिक पक्ष पहुंचाने, इप्टा की देशभर में होने वाली गतिविधियों को व्यापक प्रसार प्रदान करने के विचार के तहत इस अवसर पर इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह द्वारा इप्टा की वेबसाइट लॉन्च की गई। इत्तफाक और बिल्कुल सहजता से वहाँ पहुँचीं नादिरा जहीर बब्बर और जितेंद्र रघुवंशी ने ‘नाट्य आंदोलन के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर अपने विचार रखे। तदुपरांत सुश्री कीर्ति जैन, ने जनांदोलन और नाटक व इप्टा को लेकर आत्मीय संबोधन दिया। कीर्तिजी ने अपनी माँ रेखा जैन व पिता नेमिचंद जैन, जो दोनों ही इप्टा की 1943 में शुरुआत से ही इप्टा के सेंट्रल स्क्वाड का हिस्सा थे, से जुड़े अनेक रोचक और प्रेरक प्रसंग सुनाये। इस सत्र में बीते दिनों दिवंगत हुए इप्टा के साथियों को श्रृद्धांजलि अर्पित की गई। इप्टा की सक्रिय साथी और प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य ज्योति दीवान का पिछले दिनों अल्पायु में निधन हो गया। उन्हें याद किया गया। इसी क्रम में इप्टा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ए.के. हंगल का रिकॉर्ड किया हुआ वीडियो इप्टा के साथियों के नाम संदेश दिखाया गया।

‘धरती के लाल’, ‘दो बीघा जमीन’ और ‘गर्म हवा’ के अंशों की दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति के माध्यम से जया मेहता व विनीत तिवारी ने प्रख्यात अभिनेता बलराज साहनी के जीवन के विभिन्न कला व राजनीतिक पक्षों, जैसे इप्टा के प्रति उनका समर्पण व राजनीतिक प्रतिबद्धता, आदि पर प्रकाश डाला। इस प्रस्तुति के बाद मुंबई से आए श्री विजय हंगल ने अपने पिता ए.के. हंगल और बलराज साहनी से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। अंत में सुश्री नगीन तनवीर एवं नया थियेटर के साथियों ने इप्टा के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए ‘जनता के गीत’ शीर्षक से हबीब तनवीर, फैज अहमद फैज, मख्दूम, व अन्य शायरों के गीतों व गजलों की प्रभावी प्रस्तुति दी। इस सत्र का संचालन जया मेहता और विनीत तिवारी ने किया।

सम्मेलन का दूसरा दिन ‘महिलाओं की सांस्कृतिक आंदोलन में भूमिका’ विषय पर विचार सत्र के साथ प्रातः 10 बजे शुरू हुआ। सत्र की मुख्य वक्ता ख्यात रंगनिर्देशिका कीर्ति जैन एवं लेखिका नूर ज़हीर ने जहां रचनात्मक अभिव्यक्ति के द्वारा, फिर चाहे वह नाट्य प्रस्तुति हो या कहानी लेखन, स्त्री के नज़रिये को लोगों तक पहुंचाने पर ज़ोर दिया, तो अन्य वक्ताओं ने आंदोलन के भीतर, रचनाकर्म के दौरान स्त्रियों के प्रति संवेदनशीलता से जुड़े मसलों को रेखांकित किया। नूर ज़हीर ने तीन कहानियों और उनकी व्याख्या के बहाने से बताया कि किस तरह से न केवल कहानियों का कंटेंट बल्कि कहानियों को पढ़ते-सुनते समय उठने वाले सवालों के जवाब और कथ्य का विवेचन एक नारीवादी नज़रिये से समाज को देखने और समझने का एक अर्थपूर्ण तरीका हो सकता है।

नूर ज़हीर की ही बात को आगे बढ़ाते हुए कीर्ति जैन ने महिला निर्देशकों, ख़ासकर अनामिका हक्सर, माया राव, नीलम मानसिंह एवं अनुराधा कपूर के तथा स्वयं के काम करने के ढंग का उदाहरण देते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि महिला निर्देशकों का काम न केवल एक स्त्री के नज़रिये से नाटकों का एक पाठ प्रस्तुत करता है, बल्कि रचनाकर्म की प्रक्रिया में बहुस्तरीयता एवं सहकर्म को केन्द्रीय स्थान देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सवाल-जवाब के लंबे और जीवंत सिलसिले के दौरान दोनों वक्ताओं ने इस बात पर ख़ास ज़ोर दिया कि असल काम नज़रिये को सामने रखना है, एक वैकल्पिक विवेचन प्रस्तुत करना है, न कि किसी को कुछ सिखाना, क्योंकि सिखाया नहीं जा सकता। इस पर टिप्पणी करते हुए कल्पना मेहता ने कहा कि कला एक महत्वपूर्ण माध्यम है, परिवर्तन के लिए एवं आंदोलन को ऊर्जा देने के लिए, परंतु उसे आमजन की भाषा में होना चाहिए।

अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए अर्चना श्रीवास्तव और सीमा राजोरिया ने सांस्कृतिक आंदोलन से जुड़ी महिलाओं की भूमिका और आंदोलन में उनकी स्थिति तय करने में पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश की केन्द्रीयता को रेखांकित करते हुए महिलाओं के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने की दिशा में सांगठनिक स्तर पर कार्यक्रम और कार्यशालाएं करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि महिलाओं की सबसे बड़ी भूमिका आंदोलन में और महिलाओं को लाने में है। इसके लिए उन्हें लोगों के बीच जाकर काम करना होगा। बातचीत में हिस्सा लेते हुए राजेश श्रीवास्तव तथा विजय दलाल ने कहा कि हमें उन महिलाओं के योगदान को भी रेखंाकित करना चाहिए जो पुरुषों को कई जिम्मेदारियों से मुक्त करते हुए इतनी आज़ादी देती हैं कि वे काम कर पाते हैं। मनीष श्रीवास्तव ने प्रगतिशील आंदोलनों के अंतर्विरोधों की ओर इशारा करते हुए कहा कि चूंकि हम अंततः उसी समाज के उत्पाद हैं जिसके विरुद्ध हम लड़ रहे हैं, इसलिए सांस्कृतिक जड़ताएं राजनैतिक समर्थन और समझदारी से नहीं तोड़ी जा सकतीं क्योंकि वे हमारे दैनिक जीवन के व्यवहार में घटित होती हैं। उससे निपटने के लिए संगठन के भीतर तथा बाहर सतत विमर्श एवं बहस की ज़रूरत है। सत्र की अध्यक्षता कर रहे जितेन्द्र रघुवंशी ने कहा कि मसला केवल सहानुभूति और एकजुटता का नहीं है, बल्कि भावनात्मक आत्मसातीकरण का है। उन्होंने कहा कि बावजूद इसके कि यह सार्वजनिक बहस का मसला है अधिकांश सवालों के जवाब हम सभी को निजी स्तर पर तलाशने होंगे, क्योंकि जब हम संस्कृति की बात करते हैं तो या तो कलारूपों की बात करते हैं या फिर रोज़मर्रा के व्यवहार की। हमारी चुनौती यह है कि हम कैसे इन दोनों पक्षों को एक स्त्री के नज़रिये से देख सकते हैं। सत्र के अंत मे सुलभा लागू ने धन्यवाद ज्ञापित किया।  दोनों दिन के कार्यक्रम में देश के प्रख्यात चित्रकार सावि सावरकर (दिल्ली) और मुकेश बिजौले (उज्जैन) ने एक कार्यकर्ता की तरह महत्त्वपूर्ण भागीदारी की। इप्टा से जुड़े रहे वैज्ञानिक चेतना फैलाने के मकसद से एक एक्टिविस्ट की तरह काम कर रहे अमिताभ पाण्डे ने जीवन और कला के प्रति वैज्ञानिक नजरिया विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया।

इसके बाद आयोजित संगठन सत्र में मध्य प्रदेश इप्टा की नयी कार्यकारिणी का गठन किया गया जिसमें सर्वसम्मति से अशोकनगर इकाई के हरिओम राजोरिया को अध्यक्ष, इंदौर इकाई के विजय दलाल को उपाध्यक्ष एवं छतरपुर इकाई के शिवेंद्र शुक्ला को महासचिव चुना गया। इसके अतिरिक्त अध्यक्ष मण्डल में हिमांशु राय, जया मेहता, वी.के, नामदेव तथा डॉ. विद्याप्रकाश तथा सचिव मण्डल मे अनिल दुबे, सारिका श्रीवास्तव एवं दिनेश नायर मनोनीत किये गए। सर्वसम्मति से नीरज खरे को नया कोषाध्यक्ष चुना गया। इस सत्र में इप्टा ने प्रस्ताव पारित करते हुए इप्टा के सभी कलाकारों एवं संस्कृतिकर्मियों का आह्वान किया कि वे जन संस्कृति की रक्षा और संवर्धन हेतु हाशिए पर धकेल दिए गए वर्गों के हित में सामाजिक, वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करें एवं लोककलाओं एवं लोक कलाकारों से अपने संबंध घनिष्ठ करें।

सम्मेलन का अंतिम सत्र जनगीतों की प्रस्तुति के साथ प्रारंभ हुआ, जिसके उपरांत इस सम्मेलन के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका ‘नाव भी है तैयार’ का विमोचन इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह व राष्ट्रीय महासचिव जितेंद्र रघुवंशी ने किया। समापन करीब पांच घंटे तक चली गीतों एवं नाटकों की प्रस्तुतियों के साथ हुआ। इन नाटकों में वर्तमान शिक्षा व्यवस्था और उसमें गरीबों की स्थिति पर व्यंग्य करते हुए ‘इंडिया नाटक कंपनी’ के बाल कलाकारों ने भणई (पढ़ाई) प्रस्तुत किया। आदिवासी बच्चों की इस प्रस्तुति ने सैकड़ों दर्शकों से भरे सभागार को तो गँुजाया ही लेकिन वर्षों से थिएटर से जुड़े रहे अनेक विद्वानों को आश्चर्यचकित भी किया। यह आदिवासी बच्चे ज़मीनी आंदोलन में लगे आदिवासी मुक्ति संगठन के कार्यकताओं के बच्चे थे जिन्होंने आदिवासी होने के नाते जीवन के सहजतम रा और कला को आत्मसात किया हुआ है और प्रतिरोध और आंदोलन को भी जिन्हांने अपने जीवन की शुरुआत से ही देखा-समझा है। इसी तरह दूसरी प्रस्तुति भी देश में दमन और अनयाय के खिलाफ चल रहे एक अन्य जनांदोलन की थी। पुणे की जहांआरा ने पूर्वोत्तर राज्यों में आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट के तहत भारतीय सेना की गतिविधियों के विरोध में पिछले 12 साल से भूख हड़ताल कर रही इरोम शर्मिला के संघर्ष पर आधारित और ओजस द्वारा निर्देशित नाटक ‘ले मशालें’ की अत्यंत भावपूर्ण और स्तब्ध कर देने वाली एकल प्रस्तुति दी। इन दोनों नाटकों व इसके बाद हुई प्रस्तुतियों ने दर्शकों को और प्रतिभागियों को इप्टा और जनांदोलन के केन्द्रीय विषय को समझने व आत्मसात करने की कलात्मक अंतर्दृष्टि प्रदान की। चित्तप्रसाद, सुनील जाना, और बलराज साहनी से ए. के. हंगल तक के दौर के चित्रों से सजी पोस्टर प्रदर्शनी, फैज, मख्दूम और हबीब तनवीर के गीतों और इन नाटकों से यह स्पष्ट हो रहा था कि नाटक और जनांदोलन का समवेत अर्थ कलात्मक रूप में क्या हो सकता है।
इसके अतिरिक्त अशोकनगर इकाई ने शंकर शेष लिखित नाटक ‘पोस्टर’, गुना इकाई ने स्वदेश दीपक के ‘कोर्ट मार्शल’ तथा छतरपुर इकाई ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े भाई साहब’ का इसी शीर्षक से नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया। इप्टा जेएनयू, दिल्ली से आए साथियों ने पुलिस की यंत्रणा झेल रही छत्तीसगढ़ की सोनी सोरी के पत्रों का नाटकीय पाठ प्रस्तुत किया और उसके समर्थन में पोस्टकार्ड कैम्पैन की गई।
सम्मेलन के समापन के अवसर पर इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह ने कहा कि भले ही यह मध्य प्रदेश इप्टा का राज्य सम्मेलन था किंतु जिस ढंग से सभी वैचारिक सत्रों, उद्बोधनों और प्रस्तुतियों में विषयों की बारीकी से पड़ताल करते हुए उन्हें व्यक्तिगत से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जोड़ा गया है, और जन आंदोलन को अहम बिंदु के रूप में उकेरा गया है, उस लिहाज से यह किसी भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन से कमतर नहीं कहा जा सकता। इप्टा के नाटक करने के उद्देश्य को कलात्मक तरह से रेखांकित करता आमंत्रण पत्र जो युद्ध विरोधी विरोधी कविताओं का आकर्षक प्रभावी कोलाज भी था, से लेकर एकलव्य व दानिश बुक्स द्वारा लगायी गई पुस्तकों की प्रदर्शनी, भोजन के स्थान पर लगे अन्न से संबंधित कविताओं के पोस्टर, सत्रों की योजना और कार्यक्रमों की प्रस्तुति, सब इतने करीने से आपस में जुड़ा और क्रमबद्ध और सुनियोजित था कि इससे मध्य प्रदेश इप्टा की वैचारिक व सांगठनिक ताकत स्पष्ट होती है। इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव जितेंद्र रघुवंशी ने कहा कि मध्य प्रदेश इप्टा का यह सम्मेलन इस बात का संकेत है कि रंग-संस्कृति पर हो रहे वर्तमान और भविष्य के राजनीतिक हमलों से निपटने और उनका जवाब देने के लिए हम तैयार हैं। इस सम्मेलन की सफलता आने वाले वक्त के लिए एक नई ऊर्जा है। अंत में इप्टा की इन्दौर इकाई के अध्यक्ष विजय दलाल और सहसचिव अरविंद पोरवाल ने सम्मेलन में शामिल सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया और सम्मेलन में आये सभी प्रतिभागियों ने सम्मेलन सफल बनाने में मुख्य भूमिका निभाने के लिए इंदौर इकाई के सचिव अशोक दुबे और कोषाध्यक्ष प्रमोद बागड़ी का अभिनंदन किया।

(हरिओम राजोरिया, मनीष श्रीवास्तव, रजनीश श्रीवास्तव व विनीत तिवारी द्वारा तैयार)

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