Thursday, February 7, 2013

शांति कायम करने में कला के आदान-प्रदान की अहम भूमिका है


भारतीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के सालाना जलसे भारतीय रंग महोत्सव (भारंगम) में इस बार मशहूर अफसानानिगार सआदत हसन मंटो पर विशेष प्रस्तुतियां दी जानी थीं. इसके लिए पाकिस्तान से दो नाट्य समूह अपनी प्रस्तुतियां लेकर आए थे. लेकिन शो से ऐन पहले एनएसडी ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उनको नाटक नहीं करने दिया. अजोका की निर्देशक मदीहा गौहर से पूजा सिंह की बातचीत, तहलका से साभार :  

एनएसडी ने आपका नाटक क्यों नहीं होने दिया? आपको इस बारे में किसने और क्या बताया?
दिल्ली से पहले जयपुर में हमारा शो होना था. 16 जनवरी को शो से ठीक दो घंटे पहले हमारे पास एनएसडी प्रशासन का फोन आया. कहा गया कि सुरक्षा कारणों से शो रद्द कर दिया गया है और हम दिल्ली पहुंच जाएं, अब वहां यह शो होगा. हम दिल्ली आ गए. लेकिन यहां भी प्रस्तुति से ठीक पहले बताया गया कि सीमा पर चल रहे तनाव की वजह से सुरक्षा संबंधी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं. इसलिए बेहतर यही है कि इस नाटक का मंचन न किया जाए. मुझे समझ में नहीं आया कि एक ग्रुप जो कला प्रेमियों के बीच अपनी प्रस्तुति देने आया है, उसे किसी से क्या खतरा हो सकता है.



अचानक यह जानकर झटका लगा होगा?
जाहिर है हमें बहुत अफसोस और हैरानी हुई कि बिना किसी ठोस वजह के शो को इस तरह अचानक क्यों कैंसिल कर दिया गया. और फिर यह मंटो पर आधारित नाटक था. वही मंटों जिनके दोनों मुल्कों में अनगिनत चाहने वाले हैं. उनका नाटक कैंसिल करना आपसी भाईचारे और मुहब्बत की भावना का मजाक उड़ाना और उस रवायत को बढ़ावा देना था जिसके खिलाफ वह ताउम्र कलम चलाते रहे. हम पिछले 25 साल से भारत के अलग-अलग हिस्सों में परफार्म कर रहे हैं. हमने 26/11 के हमले के बाद मुंबई में नाटक किया था, हम श्रीनगर जैसे संवेदनशील शहर में नाटक कर चुके हैं. हम यह तसव्वुर भी नहीं कर सकते थे कि अचानक इसे कैंसिल कर दिया जाएगा. और एक ऐसी वजह पर जिसके बारे में किसी को ठोस मालुमात नहीं हैं. आखिर एलओसी पर हुआ क्या है, उसकी जांच तो अभी चल ही रही थी. बहरहाल जो भी हुआ अच्छा नहीं हुआ. मैं इसकी भर्त्सना करती हूं.

दोनों देशों में जो मौजूदा तनाव है उसे लेकर एक कलाकार के रूप में आपका क्या नजरिया है?
मुझे तो कहीं कोई तनाव नहीं नजर आया. मैं दिल्ली की सड़कों पर पैदल घूमती हूं, ठीक अपने मुल्क की तरह और आपको बताऊं कि मैं यहां लाहौर से अधिक सुरक्षित महसूस करती हूं क्योंकि हमारे यहां हालात वाकई खराब हैं. यह तनाव वाली बात पूरी तरह मीडिया की गढ़ी हुई है. रही बात नाटक रद्द होने की व तीखी बयानबाजी की तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना जैसे दलों ने सरकार पर दबाव डाला और वह झुक गई. अगर सरकार वाकई खुद को सेक्युलर मानती है तो उसे गलत दबाव के आगे झुकना नहीं चाहिए था.

आपके मन में ठीक इस वक्त क्या चल रहा है? दुख है? गुस्सा है? या और कुछ.
गुस्से से ज्यादा दुख है क्योंकि मैं अरसे से मैं हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच अमन-चैन कायम करने के प्रयासों में भी लगी हुई हूं. लेकिन बीच-बीच में ऐसी घटनाएं घट जाती हैं जो हमारी सारी मेहनत, सारे किए-कराए पर पानी फेर देती हैं. हम एक कदम आगे बढ़ने के बजाय दस कदम पीछे हो जाते हैं. अभी इंडियन हॉकी लीग से भी पाकिस्तानी हॉकी प्लेयर्स को बिना खेले वापस लौटना पड़ा. तो यह भेदभाव की, अलगाव की भावना हमें कहीं नहीं ले जाएगी. हमें इस बात को गांठ बांध लेना होगा कि शांति कायम करने में आपसी बातचीत और कला के आदान-प्रदान की अहम भूमिका है. हम लोग समय-समय पर भारतीय कला समूहों को बुलाते रहते हैं जिससे दोनों मुल्कों में अमन का पैगाम दे सकें. थियेटर के जरिये यह काम बहुत अच्छी तरह किया जा सकता है. यह दोनों देशों के संबंधों में सुधार का अहम जरिया है क्योंकि हमारी कला की विरासत साझा है.

यह जो कला को राजनीति से जोड़ने की कोशिश हो रही है, इसका विरोध किस तरह होना चाहिए?
ऐसे हालात में जब कोई गड़बड़ी होने की आशंका नजर आए तो यकीनन देश की सिविल सोसाइटी को आगे आना चाहिए. यह उनकी जिम्मेदारी है. मुझे लगता है कि यह यहां की सिविल सोसाइटी की जिम्मेदारी है. उनको आगे आना चाहिए. देखिए कि उनकी मदद से ही बाद में दो जगह इस नाटक का आयोजन संभव हो पाया. हम तो मेहमान हैं हम यहां भला क्या कर सकते हैं? बल्कि पाकिस्तान जाने पर हमें मुश्किलों का सामना करना होगा. वहां हमारा विरोध होगा. कहा जाएगा कि और जाइए भारत, बेइज्जत होने. वहां हमारी आलोचना होगी. दोनों जगह ऐसे लोग सक्रिय हैं जो चाहते हैं कि शांति स्थापित न हो सके. लेकिन मैं स्पष्ट कर दूं कि अगर दोबारा यहां आने का न्योता मिला तो मैं बिना कोई गिला या शिकवा किए तुरंत चली आऊंगी. आखिर यहां हमें प्यार करने वाले इतने सारे लोग हैं.

पाकिस्तानी कलाकारों को लेकर हिंदुस्तान में बहुत दीवानगी है, बहुत प्यार है. पाकिस्तान में भारतीय कलाकारों को लेकर कैसी सोच है?
इतनी दीवानगी है कि आप सोच भी नहीं सकतीं. सिनेमा घरों में हिंदी फिल्में लगती हैं और हाउसफुल चलती हैं. उनकी बदौलत हमारे यहां की यंग जनरेशन हिंदुस्तानी रवायतें सीख रही है, यहां के तौर-तरीकों से परिचित हो रही है. सलमान खान, शाहरुख खान और लता जी तो इतने पॉपुलर हैं कि उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. और भी तमाम कलाकारों के फैन बड़ी संख्या में मौजूद हैं.

पाकिस्तान में थियेटर की क्या हालत है? अवाम के स्तर पर उसकी पॉपुलैरिटी और गवर्नमेंट सपोर्ट कैसा है?
यहां और वहां में फर्क तो है. पाकिस्तान में थियेटर के हालात उतने अच्छे नहीं हैं जितने अच्छे हिंदुस्तान में हैं. मैं देखती हूं यहां अलग-अलग तरह के आर्ट को सरकार का भरपूर समर्थन हासिल है, जबकि हमारे यहां सरकारी सपोर्ट एकदम न के बराबर है. अजोका पाकिस्तान में बेहद पॉपलुर है. अब तो वहां के अंदरूनी हालात ऐसे हो गए हैं कि हम लाहौर के बाहर उतना परफार्म नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन फिर भी जहां-जहां हमारी प्रस्तुतियां होती है वहां-वहां लोग बहुत सराहना करते हैं. फिर भी संक्षेप में कहूं तो हमारे यहां थियेटर के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं.

आप अजोका ग्रुप की सब कुछ हैं. पाक में थियेटर में दूसरी औरतें कितनी सक्रिय हैं? वहां उनको लोग किस नजर से देखते हैं?
पाकिस्तान हो या हिंदुस्तान, थियेटर में लड़कियों की मौजूदगी कम ही है. मेरे ख्याल से तो दोनों ही जगह थियेटर में बड़ी हिम्मती लड़कियां ही काम करती हैं. मुझे लगता है कि यह पूरे दक्षिण एशिया की स्थिति है. हां, थियेटर के आगे जहां और भी है. सामाजिक स्थिति की बात की जाए तो हमारे यहां हालात थोड़ा ज्यादा खराब हैं. वहां कानूनी तौर पर भी औरतों के साथ कुछ ज्यादा ही भेदभाव होता है.

दोनों देशों में कला के स्तर पर और अधिक सहयोग कैसे बढ़ाया जा सकता है?
दो मुल्कों की रिलेशनशिप को नार्मल बनाने का सबसे अच्छा जरिया है रचनात्मक आदान-प्रदान में इजाफा करना. इसमें खेल, संगीत, थियेटर समेत सभी तरह के कला माध्यम शामिल हैं. इसके लिए सबसे पहले जरूरत इस बात की है कि वीजा नियमों को अधिक आसान बना दिया जाए ताकि सीमा के इस पार से उस पार आना-जाना आसान हो सके. इससे यह होगा कि लोग जितना एक-दूसरे को जानेंगे गलतफहमियां अपने आप दूर होंगी.


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