Tuesday, August 6, 2013

प्रेमचंद्र व हिंदी एक दूसरे के पर्यायवाची

गरा। 76 साल बाद भी मुंशी प्रेमचंद्र के पात्र प्रभावी हैं। गरीबों के आंतरिक और सामाजिक जीवन का जैसा चित्र प्रेमचंद्र ने प्रस्तुत किया है वह विश्व साहित्य में कहीं और देखने को नहीं मिलता है। बुधवार को मुंशी प्रेमचंद्र के जयंती समारोह के अवसर पर नागरी प्रचारिणी सभा में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो. गोविंद रजनीश ने यह उद्गार व्यक्त किए।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल विख्यात कवि प्रो. सोम ठाकुर ने कहा कि प्रेमचंद्र ने लंबे समय तक हिंदी साहित्यकारों का मार्ग दर्शन किया है। आज भी उनके वर्णन लोगों को ऊर्जा और प्रेरणा से भर देते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रानी सरोज गौरिहार ने कहा कि प्रेमचंद्र व हिंदी एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।

इस दौरान भारतीय जन नाट्य संघ ने प्रेमचंद्र की ‘जीवन-तार’ व ‘बाबाजी का भोग’ कहानियों की नाट्य प्रस्तुति कलाकार डॉ. विजय शर्मा, अर्जुन गिरि, मानस रघुवंशी, सिद्घार्थ, मनीष कुमार, रक्षा गोयल ने दी। इस दौरान डॉ. खुशीराम शर्मा, प्रो. कमलेश नागर, डॉ. चंद्रशेखर शर्मा, डॉ. शशि, डॉ. मधुरिमा शर्मा, आदि उपस्थित रहे।

सौजन्य : अमर उजाला

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