Friday, January 24, 2014

संकल्प झूठ के इस आडम्बर को ख़त्म करने का है

नव वर्ष की चुनौती सच को सामने लाने की है. रोजाना हो रहे धुआँधार झूठ के विज्ञापन ने जनता को भ्रमित कर रखा है. यह राजनीति और पूंजीपतियों का अवसरवादी गठजोड़ है और वे अपने फ़ायदे के लिए आमजन की भावनाओं और उम्मीदों का मज़ाक उड़ा रहे हैं. आज सच बोलने का ख़तरा बढ़ा है और सच को झूठ बनाकर पेश किया जा रहा है. इस वर्ष का संकल्प झूठ के इस आडम्बर को ख़त्म करने का है और जनशक्ति को मजबूत करना है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए पटना इप्टा के कार्यक्रम "बोल के लब  आज़ाद हैं" की शुरुआत करते हुए बिहार इप्टा के महासचिव तनवीर अख्तर ने उक्त बातें कहीं. श्री अख्तर ने गत वर्ष मुम्बई,महाराष्ट्र में डा० नरेंद्र दाभोलकर की हत्या सच बोलने के ख़तरे का ताज़ा उदाहरण है. जन के बीच झूठ के इस खेल को जनता के सामने लाने की कोशिश कभी देशद्रोह तो कभी हत्या के खुनी खेल से जुड़ जाती है. जिस प्रकार कट्टरपंथी ताक़तों ने दाभोलकर की हत्या की, वह निंदनीय है और हम इप्टाकर्मी ऐसे किसी भी प्रयास को जो चेतनागामी विचार की राह रोकते हैं, हानि पहुँचते को, उनको जनविरोधी मानते हैं और उनका विरोध करते हैं. श्री अख्तर ने चुनाव के नाम पर समुदाय के बीच वैमनस्यता फैलाने की साजिश की चर्चा करते हुए कहा कि आज एक व्यक्ति को दूसरे पर शक करना, अविश्वास करना सिखाया जा रहा है. [पुरे समुदाय को अपने हितों में इस्तेमाल करने के लिए देश को एक रंग में रँगने का अभियान चलाया जा रहा है. अहँकार और घृणा के स्वर से देश को कमज़ोर करने का यह अभियान है. इप्टा ने जिस प्रकार 1942 में बंगाल के अकाल के खिलाफ पूंजीवाद के बुर्जुआ षड़यंत्र को जनसहयोग से तोड़ा था; उसी प्रकार आगामी लोकसभा चुनाव में जनवादी ताक़तों को जनविरोधी शक्तियों के खिलाफ मजबूत करेगा।

बिहार इप्टा सचिव मंडल के साथी डा० फ़ीरोज़ अशरफ खान ने दर्शकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज जब पूरा देश नए साल का जश्न मना रहा है, तो उसी समय इप्टा के कलाकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के गीत गा रहें हैं. यह इप्टा की  भारतीय संविधान और देश की साझी सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रतिबद्धता और संकल्प का प्रतीक है. आज के दिन 1 जनवरी 1989 को रंगकर्मी सफ़दर हाशमी और मज़दूर रामबहादुर पर क़ातिलाना हमला किया गया था. हमले में मज़दूर रामबहादुर की मौत मौक़े पर ही हो गई और सफ़दर ने अगले दिन दम तोड़ दिया था. उस वक़्त पटना के सारे संस्कृतिकर्मियों ने बोलने,नाटक करने की  आज़ादी के लिए एक मंच पर आकर अभिव्यक्ति की  आज़ादी के गीत गायें। 'कलाकार संघर्ष समिति' के बैनर तले संस्कृतिकर्मियों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साझे संकल्प की जो शुरुआत की थी इप्टा वर्षों से इस दिन संस्कृतिकर्म के दायित्व के रूप में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संकल्प दिवस के रूप में मना रहा है. हमारा यह आयोजन कलाकारों की एकजुटता का भी आह्वान करता है. डा० खान ने अभिव्यक्ति की  स्वतंत्रता के सम्बन्ध में अपनी बात रखते हुए कहा कि देश की प्रमुख राजनीतिक ताक़तें रोजाना करोड़ों रुपये ख़र्च कर रैलियां आयोजित कर रहीं हैं और ना सिर्फ शहरों, नगरों, महानगरों की मैदानों में बल्कि तमाम प्रकार की सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से विज्ञापन की तरह प्रचारित प्रसारित करवाये जा रहे हैं. सवाल यह कि जब देश दुनिया गम्भीर मंदी और आर्थिक संकट से जूझ रहा है तो राजनीतिक दलों के इतना पैसा कहाँ से आ रहा है. निश्चित तौर पर यह पैसा आम जनता का है जो पूंजीपतियों के द्वारा साबुन की टिकिया से लेकर प्याज तक अधिक कीमत वसूल कर प्राप्त किया जा रहा है. राजनीतिक विज्ञापनों का यह प्रचार इन्ही अवसरवादी गठजोड़ का परिणाम है, जो चुनाव के  100 रुपये किलो प्याज बिकवाते हैं और चुनाव के बाद 20 रुपये तक पहुंचा देते हैं. हमारा संस्कृतिकर्म इसी गठजोड़ का पर्दाफाश करता है. यही इप्टा के गीतों नाटकों की अभिव्यक्ति हैं.










भिखारी ठाकुर रंगभूमि, गाँधी मैदान, पटना में इप्टा की ओर से तीन नाटक मंचित हुए. जन नाट्य मंच, दिल्ली के आलेख "समरथ को नहीं देश गुसाईं" नाटक को कलाकारों ने तनवीर अख्तर के निर्देशन में प्रस्तुत किया। मदारी जमूरा शैली में यह नाटक ना सिर्फ महँगाई के कारणों की बेसाख्ता पडताल करता बल्कि मुनाफ़ाखोरी के लिए नेता, व्यापारी और प्रशासन के गठजोड़ की पोल खोलता है. नाटक  में राजीव रंजन, चुनमुन कुमार, सोनू कुमार रजक, मदन मोहन, अखिलेश्वर, विकास कुमार गोविन्द ने अभिनय किया। साम्प्रदायिक दंगे के दौरान होने वाले रिश्तों की पड़ताल करते नाटक "आदाब" की प्रस्तुति मार्मिक ढंग से की गई. समरेश बसु के द्वारा लिखे गए इस नाटक को राजीव रंजन और चुनमुन कुमार ने रोचक ढंग से प्रस्तुत किया साथ ही मदन मोहन ने सूत्रधार के रूप नाटक के सन्देश का विस्तार किया।
नुक्कड़ नाटक के क्षेत्र में मंचन का कीर्तिमान गढ़ने वाले नाटक "मैं बिहार हूँ" को भी पटना इप्टा के कलाकारों ने प्रस्तुत किया और नए साल में बिहार के विकास के सन्दर्भों को जानने, समझने और बोलने का आह्वान किया। दैनिक हिन्दूस्तान के पत्रकार श्रीकांत के राजनीतिक आलेख पर आधारित इस नाट्य प्रस्तुति को दीपक कुमार, मदन मोहन, विकास, सुमित ठाकुर, चुनमुन, सोनू, राजीव, पियूष सिंह एवं अखिलेश्वर ने तनवीर अख्तर के निर्देशन में प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर पटना इप्टा की सचिव उषा वर्मा ने भी दर्शकों को सम्बोधित किया और इप्टा से जुड़ने का आह्वान किया।
फ़ीरोज़ अशरफ़ खां 

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