Friday, February 21, 2014

ताज की छाया में उर्फ किस्से आगरे के

गरा। ताजगंज की गलियां, राम बारात, चचा निसार और मियां सलीम की आपसी जोड़तोड़। तमाम सच्चे और काल्पनिक किरदारों को साथ लेकर लिखे गए नाटक के जरिए गुरुवार को आगरा और यहां के लोगों की अहमियत को बताने की कोशिश की गई। इप्टा की ओर से सूरसदन में प्रस्तुत किए गए नाटक ‘ताज की छाया में उर्फ किस्से आगरे के’ का मंचन देख, दर्शकों ने खूब तालियां बजाईं।

शिल्पग्राम में भीड़ न देखकर जिस तरह की निराशा जताई जा रही थी, गुरुवार को सूरसदन की तस्वीर उससे उलट थी। यहां नाटक देखने के लिए अच्छी खासी संख्या में लोग पहुंचे। चार लेखकों अमृतलाल नागर, राजेंद्र रघुवंशी, जितेंद्र रघुवंशी, विशाल रियाज के लिखे नाटकों का मंचन मार्मिक भी था और संदेश देने वाला भी। जितेंद्र रघुवंशी के नाटक ‘राम बारात’ के माध्यम से आगरा की प्रसिद्ध राम बारात की मस्ती और उसमें आने वाली परेशानियों को इंगित किया गया। बताया गया कि राम बारात के लिए पापड़ भी बेलने पड़ते हैं।

नाटक ‘क्या कहने आगरे के’ के जरिए ताजगंज की बस्तियों के उस दौर को दिखाया गया, जब यहां जूते के कामकाज में घाटा होने के बाद कारीगरों की कमी हो गई थी। सभी चाय की दुकानों पर अपनी जिंदगी के सपनों में खोया करते थे। वहीं निसार के फिल्म बनाने की हसरत और मियां सलीम के शेर-ओ-शायरी व फेंकू किस्म की प्रवृत्ति पर मोहल्ले के लड़के उन्हें छेड़ा करते थे।

-अर्जुन गिरी

























No comments:

Post a Comment