Friday, January 23, 2015

जीवन के हर रंग के चित्र हैं कृश्नचंदर के गद्य में

प्रलेसं इंदौर ने मनाई कृश्न चंदर जन्मशती 
-  अभय नेमा 
इंदौर। उर्दू के मशहूर अफसानानिगार कृश्न चंदर की जन्मशती पर प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई ने 18 जनवरी को प्रीतमलाल दुआ कला वीथिका में प्रो. अजीज इरफान और प्रो. वसीम इफ्तिखार के व्याख्यान आयोजित किए। तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक प्रमुख वक्ता ख्यात कहानीकार इकबाल मजीद (भोपाल) थे, किंतु एेन वक्त पर उनकी तबीयत खराब होने के कारण वे कार्यक्रम में आने में असमर्थ रहे। कार्यक्रम में फैयाज फैज ने भी कृश्नचंदर के कृतित्व पर रोशनी डाली। श्रोताओं का कृश्न चंदर की शख्सियत से परिचय कराया इंदौर के शायर रशीद इंदौरी ने । प्रो. शोभना जोशी ने कृश्न चंदर की कहानी ''पेशावर एक्सप्रेस" का पाठ कर श्रोताओं को कृश्न चंदर के रचनाकर्म से परिचित कराया। संजय वर्मा और राकेश विश्वकर्मा ने 'एक गधे की आत्मकथा' कहानी का पाठ किया। इस मौके पर इप्टा के संस्थापकों में से एक सैयद मोहम्मद मेंहदी पर केंद्रित एक डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी किया गया।  

प्रो. अजीज इरफान ने कहा कि कृश्नचंदर प्रेमचंद की परंपरा के कथाकार हैं। उनके साहित्य में जुल्म और गैर बराबरी के खिलाफ जबर्दस्त प्रतिरोध अभिव्यक्त होता है। उन्होंने अपने साहित्य में ताउम्र शोषितों की आवाज को बुलंद किया। कृश्न चंदर यह मानते थे कि मोहब्बत करने के लिए पहले आदमी का आदमी होना जरूरी है। 

प्रो. वसीम इफ्तिखार का कहना था कि उनके गद्य में यथार्थ का हाकाकारी बयान है। पेशावर कहानी गहराई के साथ विचलित कर देती है और आप अपने समय की सच्चाई से रू-ब-रू होते हैं लेकिन इंसानियत के जिंदा रहने की उम्मीद का दामन वे छोड़ते नहीं हैं। कृश्न चंदर की कलम की जादूगरी उनकी कहानियों, उपन्यासों, व्यंग्य और रिपोतार्जों में नजर आती है। उनकी कहानी कालू भंगी, अन्नदाता या दो फर्लांग लंबी सड़क में उन्होंने हालात की जो मंजरकशी की है, दुख दर्द और गुस्से की जो फोटोग्राफी की है, वही उनकी जादूगरी है। भुखमरी, गरीबी, जुल्म संघर्ष, हिम्मत, उदारता, गम खुशी जीवन के हर रंग की तस्वीर उन्होने अपने ब्रश से बनाई है। कृश्न चंदर की सबसे बड़ी खूबी यही है कि उनके लेखन में रूमानी जज्बात और इन्कलाब साथ-साथ नुमाया हुए हैं। रूमानी अफसाने लिखते हुए वे इन्कलाब को नहीं छोड़ते।  प्रो. वसीम ने कृश्नचंदर की कहानियों के कई अंशों को उद्धृत कर सिलसिलेवार ढंग से अपनी बात कही।  हिंसा के दौर में संस्कृति का क्या हाल होता है, उन्होंने 'एक गधे की आत्मकथा' के हवाले से बताया - फसादियों में लाहौर के फल विक्रेता गंडासिंह भी थे। जिनकी लाहौरी दरवाजे के बाहर एक बड़ी दुकान थी। जब मैं वहां पहुंचा तो गंडासिंह लायब्रेरी से सारी पुस्तकें एक-एक करके बाहर  फेंक रहे थे और लाइब्रेरी को फलों से भर रहे थे। ये गालिब के दीवान फेंके गए और ये मलीहाबाद के आम रखे गए। जोश के स्थान पर जामुन और मोमिन के स्थान पर मोसंबी और कृशनचंदर के स्थान पर ककड़ियां रखी थीं।  

फैयाज फैज ने कहा कि उनके गद्य में कविता की संवोदना थरथराती है। वे रूमानियात के अंदाज में हकीकत बयान करते हैं। तंज बयानी का अंदाज एक गधे की आत्मकथा, बापू का वापसी और मेंढक की गिरफ्तारी नामक कहानियों में मिलता है। उनका व्यंग्य बड़ा असरकारी है। उन्होंने अफसाने खास  इरादे से लिखे है ताकि समाज में तब्दीली हो। 

 इस मौके पर इप्टा के संस्थापकों में से एक सैयद मोहम्मद मेंहदी पर केंद्रित एक डाक्यूमेंट्री "मामूजान की डायरी" का प्रदर्शन भी किया गया। फिल्म का परिचय दिया इप्टा  से संबद्ध सारिका श्रीवास्तव ने। कार्यक्रम की अध्यक्षता की प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई के अध्यक्ष एसके दुबे ने की। कार्यक्रम में चुन्नीलाल वाधवानी, ब्रजेश कानूनगो, पेरीन दाजी, शिवकुमार मिश्र- रज्जन, केसरी सिंह चिड़ार, शफी शेख, सचिन श्रीवास्तव, आकांक्षा श्रीवास्तव, कामना शर्मा, प्रशांत यादव, तपन भट्टाचार्य, फारूख अहमद, अख्तर खान, डा.अयाज अहमद कुरैशी, डा. मु. नौशाद अालम, रुखसाना मिर्जा, तौसीफ मजीद, मक्सूद अहमद, सारिका श्रीवास्तव, राजकुमार कुंभज, फरियाद बहादुर, नसीर अंसारी, अशोक दुबे, राम आसरे पांडे, रवींद्र व्यास  आदि मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन किया प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई के सचिव अभय नेमा ने।

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