Friday, February 13, 2015

डोंगरगढ़ में 10वें राष्ट्रीय नाट्योत्सव का 'सुंदर' समापन

पुंज प्रकाश की रिपोर्ट
प्टा भिलाई की प्रस्तुति सुन्दर के साथ ही आज 10वें राष्ट्रीय नाट्योत्सव का समापन हो गया। प्रस्तुति अपने नाम के अनुरूप ही सहज और सुन्दर थी। मोहित चट्टोपाध्याय लिखित और रणदीप चटोपाध्याय अनुदित यह नाटक सौदर्य का आंतरिक विश्लेषण प्रस्तुत करती है और इस तर्क को स्थापित करती है कि खूबसूरती शारीरिक नहीं बल्कि एक आंतरिक विषय है। प्रस्तुति में राजेश श्रीवास्तव, रूचि गोखले, अनिल, सुबास मुदुलि आदि अभिनेताओं ने अभिनय किया। इस नाटक का निर्देशन निशु पांडे व मणिमय मुखर्जी ने किया था।



प्टा डोंगरगढ़ के कलाकारों द्वारा जनगीतों के गायन के पश्चात् मारवा थियेटर पुणे की एकल प्रस्तुति ले मशालें नामक नाटक से आज के नाट्योत्सव की शुरुआत हुई। इरोम शर्मीला और मणिपुर को विषय बनाकर निर्देशिका ओजस एस वी ने अपने निर्देशन में एक यादगार प्रस्तुति रची है, जिसे अभिनेत्री रेखा ठाकुर ने अपने अभिनय के द्वारा जीवंत किया। प्रस्तुति न केवल इरोम की सच्चाई को सामने रखती है बल्कि भारत के नक्शे पर विद्यमान मणिपुर नमक राज्य की अस्मिता और संस्कृति व राज्य केंद्रित हिंसा की भी झलक प्रस्तुत करती है। मणिपुर की नंगी सच्चाई देखकर लोगों के आँखों में आंसू आ गए। नाटक देख रहे किसी भी दर्शक के लिए यह यकीन करना सहज नहीं था कि आज के समय में भी दहशत की ऐसी कहानियाँ दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र माने जानेवाले देश में रोज़ रची जा रही है। प्रस्तुति इस बात पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है कि गंभीर नाटकों को दर्शक पसंद नहीं करते? उपस्थित दर्शकों की शांति और प्रस्तुति के उपरांत खड़े होकर लंबे समय तक ताली बजाते रहना इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि कलाप्रेमी जनमानस गंभीर नाटकों के प्रति भी संवेदनशील हैं बशर्ते प्रस्तुति के कथ्य और प्रदर्शन में दर्शकों तक संप्रेषित होने का दम हो। 



प्टा चड़ीगढ़ के कलाकारों के द्वारा प्रस्तुत लोकनृत्य, लोकगीत, कविताएँ आदि के द्वारा 10वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह, डोंगरगढ़ के दूसरे दिन की शुरुआत हुई। विकल्प डोंगरगढ़ द्वारा आयोजित इस नाट्योत्सव में आज के दिन कुल मिलकर चार नाटकों की प्रस्तुति हुई। ए लहू किसदा है और गड्ढा नामक नुक्कड़ नाटकों की प्रस्तुति खालसा स्कूल में प्रातः 11 बजे से हुई। ए लहू किसदा जहां समाज में व्याप्त अमीरी गरीबी को पर्दाफाश करता है वहीं गड्ढा गुरशरण सिंह द्वारा लिखित प्रसिद्द नुक्कड़ नाटकों में से एक है। इस नाटक में एक व्यक्ति गलती से सड़क पर बने गड्ढे में गिर जाता है। समाज के तमाम वर्ग के लोग केवल तमाशा देखते हैं लेकिन उसे गड्ढे से कोई नहीं निकलता। आखिरकार यह नाटक उस सवाल के साथ खत्म होता है कि इस गड्ढे में गिरे व्यक्ति को आखिर कौन बाहर निकलेगा? इन दोनों ही नाटकों का निर्देशन बलकार सिद्धू ने किया था।
वहीं महोत्सव के मुख्य मंच पर मेरा लौन्ग गवाचा एवं पहाड़पुर की कथा नामक नाटकों को रात आठ बजे से खेला गया। इप्टा डोंगरगढ़ के संगीत निर्देशक मनोज गुप्ता के नेतृत्व में जनगीतों के गायन के पश्चात् पाकिस्तानी कथाकार लाली चौधरी की कहानी पर आधारित नाटक मेरा लौन्ग गवाचा नामक नाटक का मंचन बलकार सिद्धू के निर्देशन में इप्टा, चंडीगढ़ के कलाकारों द्वारा किया गया। यथार्थवादी तरीके से प्रस्तुत किया इस प्रस्तुति का नाट्य रूपांतरण पंजाब के सुप्रसिद्ध नाटककार गुरुशरण सिंह ने किया था। यह नाटक दक्षिण एशियाई मुल्कों में महिलाओं की सामाजिक-पारिवारिक हैसियत का सजीव चित्रण प्रस्तुत करते हुए महिलाओं की स्वतंत्रता की हिमायत करता है। 


दूसरे दिन की आखिरी प्रस्तुति स्थानीय नाट्य दल इप्टा डोंगरगढ़ का व्यंग्य नाटक पहाड़पुर की कथा थी। स्थानीय कथाकार तजिंदर सिंह भाटिया की कहानी पर आधारित यह नाटक उस पहाड़पुर की कथा कहती है जिसे रेलवे लाइन दो भागों में बांटती है। एक छोर पर मंदिर है तो दूसरे छोर पर नगर की बड़ी आबादी। नगर के दोनों हिस्सों को जोड़ने वाली सड़क पर रेलवे फाटक अक्सर बंद रहता है। इसकी वजह से स्थानीय निवासियों को बहुत सारी समस्यायों का सामना करना पड़ता है। इसी कथानक को इस नाटक में हास्य और व्यंग के माध्यम से बड़ी ही कुशलतापूर्वक प्रस्तुत किया गया। राधेश्याम तराने निर्देशित इस नाटक का नाट्यालेख दिनेश चौधरी एवं संगीत मनोज गुप्ता ने तैयार किया था। मंच पर मतीन अहमद, नूरुद्दीन जीवा, जय कुमार, निश्चय व्यास, दिनेश नामदेव, प्रतिज्ञा, दिव्य आदि अभिनेताओं ने अपनी भूमिकाओं का निर्वाह बखूबी किया। 


ह पहला मौका था कि महोत्सव में नाटकों की प्रस्तुति डोंगरगढ़ में अलग अलग स्थानों पर की गयी। इप्टा, डोंगरगढ़ के कलाकारों द्वारा मनोज गुप्ता के नेतृत्व में दुष्यंत कुमार की अमर रचना "हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए" के गायन के साथ ही विकल्प, डोंगरगढ़ के 10वें राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव की शुरुआत बम्लेश्वरी  मन्दिर के प्रांगण में हुई। इस महोत्सव का उद्घाटन रामलीला जैसे चर्चित नाटक के नाटककार राकेश ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जहाँ एक और आज की राजनीति इंसान को इंसान से बांटने की साजिश चल रही है ऐसे माहौल में कला और कलाकार की महत्ता और ज़्यादा बढ़ जाती है क्योंकि कला इंसान को जोड़ती है। भारतेंदु नाट्य अकेडमी में पूर्व निदेशक व चर्चित फ़िल्म व रंगमंच के अभिनेता व शिक्षक युगल किशोर ने इस अवसर पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि डोंगरगढ़ जैसे क़स्बे में रंगमंच के प्रति लोगों का स्नेह सराहनीय है। ऐसे आयोजन न केवल एक कलाकार को उत्साहित करते हैं बल्कि समाज में स्वास्थ्य मनोरंजन की परम्परा का भी प्रवाह करते हैं। वहीं नाट्य निर्देशिका वेदा जी ने डोंगरगढ़ जैसे क़स्बे में नाटकों के प्रति उत्साह की सराहना करते हुए महोत्सव की सफलता की कामना की। इस अवसर पर राष्ट्रिय नाट्य विद्यालय के पुर्व छात्र पुंज प्रकाश भी उपस्थित थे।

हले दिन की पहली प्रस्तुति अनुकृति रंगमंडल, कानपुर का नाटक बकरी था। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखित इस प्रसिद्द नाटक का निर्देशन डॉ अमरेंद्र कुमार ने किया था। राजनीतिक-सामाजिक स्थितियों पर नौटंकी शैली में व्यंग्य प्रस्तुत करता इस नाटक में आकांक्षा शुक्ला, सुरेश श्रीवास्तव, राजीव तिवारी, जब्बार अकरम, विजयभान सिंह, अनिल निगम एवं विजय कुमार अभिनेताओं ने अभिनय किया। 

हले दिन की दूसरी प्रस्तुति इप्टा चंडीगढ़ का पंजाबी नाटक एके दा मन्त्र उर्फ़ मदारी आया था। अपूर्वानंद लिखित इस नाटक का निर्देशन बलकार सिद्धू ने किया था। विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित बलकार सिद्धू हिंदी व पंजाबी रंगमंच, फ़िल्म व धारावाहिकों के चर्चित हस्ताक्षरों में से एक हैं। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्यायों को जमूरे-मदारी शैली में बड़ी ही कुशलतापूर्वक प्रस्तुत किया गया था। नाटक यह बताता है कि किस तरह अपने मुल्क में धर्म, जाति, नस्ल व रंगभेद को तनाव और आतंक को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। प्रस्तुति दर्शकों से सहजतापूर्वज संवाद स्थापित करते हुए बिम्बों और प्रतीकों का भी प्रभावशाली प्रयोग करती है। 


राष्ट्रीय नाट्य समारोह की पूर्व संध्या पर दिनांक 06 फरवरी 2015 को डा. आेमेन्द्र के ही निर्देशन में अनुकृति रंगमंडल कानपुर द्वारा नाटक "दस दिन का अनशन" स्थानीय भगतसिंह चौक में खेला गया। हरिशंकर परसाई की रचना पर आधारित इस नाटक का आलेख सुमन कुमार ने लिखा है। चूंकि स्थानीय इप्टा इकाई ने अपनी पहचान नुक्कड़ नाटक से ही बनाई है, इसलिये नगर से बाहर की किसी इकाई द्वारा पहली बार नुक्कड़ नाटक खेले जाने के कारण नाटक स्थल पर दर्शकों का हुजूम उमड़ पड़ा। 


झलकियां


1.राजेश श्रीवास्तव इप्टा भिलाई के एक बेहतरीन अभिनेताओं में से एक हैं; इसमें कोई शक नहीं। इन्हें मंच पर अभिनय करते हुए देखना हमेशा ही एक ताज़गी भरा अनुभव रहा है मेरे लिए। वैसे ही इप्टा डोंगरगढ़ के मतीन भाई को अभिनय करते हुए देखना सुखद अनुभूति है। अतिशयोक्ति न मानी जाय तो कह सकता हूँ कि यह लोग अपने आपमें अभिनय की पाठशाला हैं।  इरोम शर्मीला और मणिपुर को विषय बनाकर ओजस ने अपने निर्देशन में एक यादगार प्रस्तुति रची है। मणिपुर की नंगी सच्चाई देखकर लोगों के आँखों में आंसू आ गए। कौन कहता है कि गंभीर नाटकों को दर्शक पसंद नहीं करते? प्रस्तुति के बाद जिस प्रकार दर्शक खड़े होकर ताली बजाते रहे वह अपने आपमें एक संवेदनशील मसला बन जाता है। मुझे तो यह लगता है कि अपनी कमियों को छुपाने के लिए लोगों ने यह तर्क गढ़ दिया हैं कि दर्शक गंभीरता से दूर रहना चाहते हैं। मारवा थियेटर पुणे की इस प्रस्तुति को कहीं मौक़ा मिले तो ज़रूर देखिएगा। बहरहाल; आज जुगल किशोर सर, राकेश सर और वेदा जी के सांगत में शाम से ही इतना हंसा हूँ कि पेट में दर्द हो गया। तीनों ज़िंदादिल इंसान हैं भाई। मज़ा आ गया। खैर; यहाँ ऐसे कई लोग है जो इस नाट्योत्सव का पुरे साल इंतज़ार करते है।


2.जवाहर नवोदय विद्यालय, डोंगरगढ़ के सभागार में नाट्योत्सव के तीसरे दिन का आगाज़ हो चुका है। नवोदय विद्यालय के बच्चों की बैंड पार्टी ने हम अतिथियों का स्वागत किया। फुल-पत्ती तो मिली ही। बच्चों से रंगमंच के विषय में थोड़ी औपचारिक वार्ता भी हुई। युगल किशोर सर, नाटककार राकेश जी, रंगकर्मी वेद जी सहित हम सब ने रंगमंच को लेकर बच्चों से बातचीत की। बच्चे बड़े उत्साहित हैं। अब इप्टा चंडीगढ़ का नाटक शुरू होनेवाला है।  बच्चे भविष्य हैं। इनके अंदर अभी से रंगमंच की नीव डाली जाय तो शौकिया रंगमंच की अनेकों समस्याएं हल हो सकतीं हैं। बहरहाल; यह एक लंबी प्रक्रिया है। कोशिशें जारी रहनी चाहिए। 

3.नाटक संपन्न हुआ। दर्शक चले गए। कुर्सियां भी समेट दी गईं। तस्वीर में दिख रही लैम्प बांस की बनी है जिसे इप्टा के एक स्थानीय रंगकर्मी ने बनाई है। नाट्य महोत्सव के बाद इसे संभालकर रख दिया जाएगा ताकि अगले साल भी काम आ सके। निर्देशक राधेश्याम तराने जी बताते हैं कि एक बार और लैम्प बनवाया गया था जिसे स्थानीय निवासियों ने शादी ब्याह के मौक़े पर खूब इस्तेमाल किया। इस लैंप का भी ऐसे मौके पर भरपूर इस्तेमाल होगा, इसकी पूरी संभावना है। 




4.कुछ देर पहले गेस्ट हॉउस से नाट्य प्रदर्शन स्थल की और निकला था कि मोटरसाईकल पर सवार एक सज्जन ने आवाज़ देकर हमारी गाडी रोक ली। फिर गाडी चला रहे दिनेश चौधरी जी के पास आके पर्स निकालकर 500 रुपया देते हुए बोले कि इस बार मेरा चंदा नहीं कटा है, इसे रखिए, रसीद मैं आज नाटक में आके ले लूंगा। फिर वो कल देखे नाटकों की तारीफ़ करने लगे और आखिर में कहा कि बड़ा मज़ा आया। और मैं यह सोच रहा हूँ कि कल प्रदर्शित दोनों नाटक विशुद्ध रूप से राजनैतिक और सन्देश देने वाले थे, फिर भी उन्हें मज़ा आया। बहरहाल; यहां कोई सभागार नहीं है। कपड़े से सभागार बनाया गया है और प्लास्टिक की कुर्सियां सजाई गई है। नाटक की समाप्ति के उपरांत स्थानीय कलाकार इसे एक जगह इकठ्ठा करके रख देते हैं और दूसरे दिन फिर इसे सजाते हैं। खाना बनाने से लेकर नाटक करने तक का सारा काम खुद किया जाता है। यह शौकिया रंगमंच का जूनून है भाई। इस देश में अधिकतर रंगमंच ऐसे ही चलता है - लगन, जूनून और पागलपन की बदौलत। बाकी तो हवा हवाई बात होती ही रहती हैं; होनी भी चाहिए। हाँ जिन सज्जन ने 500 रुपए का चंदा दिया था मैंने उनका नाम पता किया। उनका नाम है राजेश मिश्रा।



5.खालसा स्कूल, डोंगरगढ़ का मंच सजके तैयार है। इप्टा चड़ीगढ़ के कलाकार भी तैयार हैं। पंजाब दे रंग का रंगारंग कार्यक्रम कुछ ही देर में शुरू होनेवाली है। लोकनृत्य, लोकगीत, कविताएँ आदि के पश्चात नाटक "ए लहू किसदा है" और "गड्ढा" नामक नाटक का मंचन किया जाएगा। एक जगह के शालिग्राम बनके नाटक करना और बात है और लोगों के बीच जाकर नाटक करना और। दोनों के अपने अपने क़ायदे-कानून, फ़ायदे-नुकसान हैं। इप्टा चंडीगढ़ के निर्देशक, नाटक व फ़िल्म (मेरे डैड की मारुती, देसी मैरेज, तनु वेड्स मनु आदि) अभिनेता बलकार संधु व उनकी टीम का उत्साह अनुकरणीय है। रंगमंच ऐसे ही उत्साह और समर्पण की मांग करता है। कल रात 11.30 बजे तक नाटकों की प्रस्तुति की। खाना खाने के पश्चात फिर नाटकों के पूर्वाभ्यास में लग गए। सुबह से पुनः अभ्यास और अभी लोक नृत्यों, लोकगीतों और नाटक की प्रस्तुति करेंगें और शाम में फिर एक नाटक को प्रस्तुत करेंगें। मैं तो कायल हो गया जी। कल बातचीत के दौरान इन्होंनें कहा कि "नाटक करने के लिए वजह चाहिए एक अनिवार्य और वाजिव वजह।"इनकी और इनके दल की ऊर्जा की वजह भी यही अनिवार्य और वाजिव वजह ही है; निश्चित रूप से।

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