Wednesday, February 25, 2015

प्रेमचंद के नाटक रंग मानसरोवर के मंचन पर भावुक हुए दर्शक

गरा। पंडित की गालियां और ताने। भूखे पेट और लथपथ पसीना। फिर भी दुखिया के सेवाभाव में कोई कमी नहीं। हाड़तोड़ मेहनत पर भी पंडित का जी न भरा और लगातार लकड़ी काटने को विवश करता रहा। कब तक दुखिया की कमजोर हड्डियां यह सहन करती, नतीजतन मौत। दुखिया को कष्टों से जरूर मुक्ति मिली, लेकिन सदगति नहीं। जात-पात पर चोट करते इस नाटक का मंचन ताजमहोत्सव के तहत सूरसदन में आयोजित हुआ।

भारतीय जन नाट्य संघ के कलाकारों ने ऐसा अभिनय किया कि दर्शकाें के आंखें भी नम हो गईं। पंडित के द्वार पर दुखिया मरा पड़ा था, लेकिन उसका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं। कारण, छोटी जात के इस गरीब को छुए तो कौन। जब उसके शरीर से दुर्गंध आने लगी तो पंडित ने उसके पैर में रस्सी का फंदा डाल खींच कर खेत में फेंक आया। जिस पर गिद्घ, चील और जानवर लगे थे। इसी के साथ पर्दा गिरता है।

महान लेखक मुंशी प्रेमचंद के नाटक रंग मानसरोवर से लिए गए इस प्रसंग ने सभी को झकझोर दिया। निर्देशक दिलीप रघुवंशी और पार्श्व संयोजन जितेंद्र रघुवंशी ने किया। इसके अलावा खुदाई फौजदार नाटक और गीत-कविताओं पर आधारित मन का सागर की प्रस्तुति दी। पंडित की भूमिका में डा. विजय शर्मा और दुखिया बने अंकित शर्मा ने अपनी कला से सभी का मन जीत लिया। कार्यक्रम में स्वतंत्रता सेनानी सरोज गौरिहार, सपा नेता रामजीलाल सुमन, कमिश्नर प्रदीप भटनागर, एडीए सचिव प्रभांशु श्रीवास्तव, संगीता भटनागर, डा. शशि तिवारी, पुन्नी सिंह, प्रो. राजेंद्र कुमार आदि रहे।






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