Friday, April 15, 2016

भगतसिंह की याद में राजद्रोह के कानून से निजात पाने का आंदोलन छेड़ें



- महेंद्र सिंह

प्रगतिशील लेखक संघ, भोपाल इकाई द्वारा आयोजित ‘‘स्मरण भगत सिंह’’ कार्यक्रम 2 अप्रैल, 2016 को हिंदी साहित्य सम्मेलन के मायाराम सुरजन भवन में आयोजित किया जिसमें मुख्य वक्ता थे सर्वश्री विनीत तिवारी, रामप्रकाश त्रिपाठी व शैलेन्द्र शैली। अध्यक्षता की वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशन्कर हरदेनिया ने। 

प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव कॅामरेड विनीत तिवारी ने अपनी बात ‘‘राजद्रोह’’ पर केन्द्रित करते हुए कहा कि ये कानून अंग्रेजों के शासनकाल में बनाया गया। अधिकांश समझदार देश इससे निजात पा चुके हैं। इस कानून की मूल अवधारणा में इंग्लैंड के राजा द्वारा भारत और भारत जैसे अनेक गुलाम देशों पर आधिपत्य ईश्वरीय मानकर स्वीकार किया जाता था और राजद्रोह का आशय राजा की सत्ता के विरूद्ध किसी भी तरह के काम को गिना जाता था। जाहिर है कि जब राजे-रजवाड़े खतम हो गए और उपनिवेशवाद का समापन हो गया तो इस कानून को भी तिलांजली दे देनी चाहिए थी।

उन्होंने कश्मीर के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि हम पूरी तरह से कश्मीर के भारत में होने के पक्ष में हैं लेकिन कश्मीर की जनता को भी यह अहसास होना चाहिए कि वो भारत का अभिन्न अंग है। अगर कुछ लोग जनता को भारत के खिलाफ भड़काते हैं तो भारतीय राज्य को भी वहाँ की जनता का विश्वास जीतने की कोशिश करनी चाहिए। 

जेएनयू के मामले में काॅ. विनीत ने कहा कि भाजपा ने एक सुनियोजित रणनीति के तहत समूचे वामपंथ को आम जनता की निगाह में खलनायक बनाने की कोशिश की लेकिन उस प्रक्रिया में वे खुद ही हाशिए पर अकेले सिमट गए। उन्होंने अनुपम खेर जैसे कलाकारों की बात करते हुए कहा कि वे भी भाजपा की साजिश का  हिस्सा बनकर आधा सच और आधा झूठ परोसने के खेल में शरीक हुए। अंत में उन्होने कहा कि हम वामपंथ को इस देश में सहानुभूति पर नहीं चाह रहे हैं बल्कि वामपंथ दलित, शोषित, उत्पीडि़त जनता का आखिरी सम्बल है। चुनाव की जीत-हार से वामपंथ का आकलन नहीं हो सकता।

भगत सिंह को याद करते हुए कॅा. विनीत ने कहा कि भगतसिंह ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता मजदूर आंदोलन और समाजवादी आंदोलन के साथ जुड़कर हासिल की थी। आज भी सभी वामपंथी ताकतों के सामने ये चुनौती है कि हम अपने आप को मेहनतकश  तबके के साथ जोड़ें और अपने सिद्धांतों को रोजमर्रा की व्यवहारिक राजनीति के साथ जोड़कर माक्र्सवाद के अनूरूप अपना रास्ता तय करें। हमें उनके झूठ को उजागर करने की मुहिम को पूरी ताक़त से खड़ा करना चाहिए। 

प्रलेसं के प्रांतीय सचिव मंडल सदस्य शैलेन्द्र शैली ने भगत सिंह के ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ और ‘विद्यार्थी व राजनीति’ लेखों के उद्धरण सुनाए। काॅ. गोविंदसिंह असिवाल ने भगतसिंह पर लिखी अपनी कविता का पाठ किया।

भोपाल में हुए इस कार्यक्रम में हरदेनियाजी ने देश में हर वस्तु के भगवाकरण किए जाने पर चिंता व्यक्त्त करते हुए कहा कि ये भगवाकरण लोगों में आपसी वैमनस्य पैदा कर रहा है जिससे जरा-जरा सी बात पर दंगे भड़क रहे हैं, हत्याएं हो रही हैं। ये संघी सरकार स्वाथ्य से लेकर शिक्षा, व्यवसाय, बाजार हर क्षेत्र का बाजारीकरण कर रही है, निजीकरण कर रही है, हमें इसका विरोध करना बहुत जरूरी है।

इस बैठक में कुछ प्रस्ताव भी पारित किए गए जिसमें उडि़या के प्रसिद्ध लेखक, डॅाक्यूमेन्ट्री फिल्म निर्माता और मानव अधिकार कार्यकर्ता देवरंजन षड़ंगी को पुलिस ने बेबुनियाद आरोपों की बिना पर गिरफ्तार किया है, यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है और सरकार की फासीवादी मंशाओं को उजागर करता है। इसके लिए मांग की गई कि उन पर लगे सभी आरोपों को निरस्त कर उन्हें तत्काल रिहा किया जाना चाहिए। हरदेनियाजी ने प्रस्ताव रखा कि भोपाल में बने ओवरब्रिज का नाम ‘‘सावरकर’’ के नाम पर ना होकर भगत सिंह के नाम पर किया जाना चाहिए, जिसका सभी ने अनुमोदन किया।

जनवादी लेखक संघ के रामप्रकाष त्रिपाठी एवं नागपुर के मानवधिकार कार्यकर्ता सुरेश खैरनार ने भी इस मौके पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि फासीवाद से लड़ने के लिए सभी लोकतांत्रिक ताक़तों को फासीवाद के विरुद्ध एकजुट होना होगा। यह समय की माँग है।

कार्यक्रम का संचालन भोपाल प्रलेसं के इकाई सचिव श्री महेन्द्र सिंह ने किया और आभार ज्ञापित किया कवि अरविंद मिश्र ने। साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि राजेष जोशी, ओम भारती, अनिल करमेले, अमिताभ मिश्र, नवल शुक्ल, देवीलाल पाटीदार, वसंत सकरगाये, संध्या कुलकर्णी, शहनाज़ इमरानी, दीपक विद्रोही, अल्तमाश जलाल, जावेद, उपासना तथा अन्य अनेक लेखक, पत्रकार, कलाकर्मी एवं संस्कृतिकर्मी भी मौजूद थे।

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