Saturday, February 4, 2017

इस तरह रखी इमरत खां साहब ने एक धरोहर की आबरू

सितार और सुर बहार के जादूगर उस्ताद इमरत खां जैसे ८२ वर्ष के विश्व-प्रसिद्ध कलाकार के सामने इस बार भारत सरकार ने पद्मश्री का टुकड़ा फेंका जबकि उनके कई शिष्य-शागिर्द और संगतिये-पंगतिये कभी के पद्मविभूषण और भारतरत्न हो गये ।

उस्ताद इमरत खां ने पद्मश्री अवार्ड को ठुकराते हुये भारत सरकार को जो पत्र लिखा है वह एक बड़े कलाकार की पीड़ा का दस्तावेज़ बन गया है । वेदना, व्यंग्य और कलाकार के आत्मस्वाभिमान में डूबा यह पत्र पढ़ने लायक ही नहीं संजो कर रखने लायक है ।

भाषा और शैली ऐसी जैसे सआदत हसन मंटो ने ख़ुद, इमरत खां के लिये, जन्नत या दोज़ख जहां भी उनकी हाल रिहाइश है, आकर यह लिखा हो !

-असद जैदी 

इमरत ख़ाँ साहब का वक्तव्य

(अनुवाद)
मेरी ज़िन्दगी के अाख़िरी दौर में, जबकि मैं ८२ साल का हो चला हूँ, भारत सरकार ने मुझे पद्मश्री अवार्ड देना तय किया है।

मैं इसके पीछे जो नेक इरादा है उसकी क़द्र करता हूँ, लेकिन इस अवार्ड के मक़सद को लेकर बिना किसी दुराग्रह के यह कह सकता हूँ कि यह मेरे लिए ख़ुशी की नहीं, उलझन की बात है। यह अवार्ड अगर मिलना था तो कई दशक पहले मिल जाना चाहिए था—जबकि मुझसे जूनियर लोगों को पद्मभूषण दिया जा चुका है।

मैंने भी हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में बहुत योगदान दिया है और उसके व्यापक प्रसार में लगा रहा हूँ। ख़ासकर सितारवादन की विकसित शैली और अपने पूर्वजों के सुरबहार वाद्य को दुनिया भर में फैलाने में मैंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। मुझे हिन्दुस्तानी कला और संस्कृति के अाधारस्तंभों, अपने समय की महान विभूतियों, के साथ बराबरी की सोहबत में संगीत बजाने का सौभाग्य हासिल हुअा। इनमें उस्ताद विलायत ख़ाँ साहब, उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ साहब, उस्ताद अहमद जान थिरकवा ख़ाँ साहब, पंडित वी जी जोग और अन्य बड़ी हस्तियाँ शामिल हैं। इनमें से हरेक निर्विवाद रूप से हिन्दुस्तानी संगीत के उच्चतम स्तर तक पहुँची हुई हस्ती है, और इन सभी को पद्मभूषण या पद्मविभूषण से नवाज़ा गया था।

मेरा काम और योगदान सबके सामने है और मेरे शिष्य, जिनमें मेरे बेटे भी शामिल हैं, अपने समय की कसौटी पर खरे उतरेंगे और इस बात का सबूत देंगे कि मैं किस हद तक अपने अादर्शों और अपनी जड़ों के प्रति सच्चा रहा हूँ। संगीत ही मेरा जीवन है, और मैंने एकनिष्ठता से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के रंग-रूप और रूह की पाकीज़गी को बचाए रखा है, और किसी भी तरह के बिगाड़ से उसकी हिफ़ाज़त की है। मैं और मेरे शिष्य विश्व के सभी अालातरीन मंचों पर सितार और सुरबहार के माध्यम से इस धरोहर को पेश करते रहे हैं। ये संगीतकार इसी रिवायत को अाज की पीढ़ी तक पहुँचाने में कामयाब रहे हैं।

ज़िंदगी के इस मुक़ाम पर मुझे यह ठीक नहीं लगता कि उम्र या शोहरत के पैमाने पर मेरे काम और ख़िदमत को मेरे शागिर्दों और बेटों के स्तर से कम करके अाँका जाए।मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी समझौते नहीं किये। अब जाकर ऐसे अवार्ड को लेना, जो भारतीय संगीत में मेरे योगदान और मेरी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से क़तई मेल नहीं खाता, अपनी और अपनी कला की अवमानना करना होगा। मैं ख़ुदगर्ज़ नहीं हूँ, लेकिन भारतीय शास्त्रीय संगीत के सुनहरी दौर के महानतम संगीतज्ञ मुझे जो प्यार, भरोसा और इज़्ज़त बख़्श चुके हैं मुझे उसका भी ख़याल रखना है। मैं इसी धरोहर की अाबरू रखने के ख़याल से यह क़दम उठा रहा हूँ।

विनीत
इमरत ख़ाँ

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