Wednesday, March 29, 2017

कानपुर: विश्व रंगमंच दिवस पर गोष्ठी

कानपुर, 27 मार्च 17 । विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर आज अनुकृति रंगमंडल ने मजदूर सभा भवन ग्वालटोली में गोष्ठी आयोजित की। गोष्ठी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी डा. ओमेन्द्र कुमार ने कहा कि हर साल 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है।1961 में अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (आईटीआई), फ्रांस ने इसकी शुरुआत की थी। वैसे विश्व में सर्वाधिक प्राचीन भारतीय रंगमंच हैं, भरत मुनि ने देवताओं के मनोरंजन के लिए  लगभग 400 ईसा पूर्व पंचम वेद नाट्य शास्त्र की रचना की थी। 

उन्होंने कहाकि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था, देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। नाट्य शास्त्र में के 37 अध्यायों में न नाट्य रचना के नियमों का आकलन किया गया है बल्कि अभिनेता रंगमंच और प्रेक्षक इन तीनों तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है।

रंगकर्मी कृष्णा सक्सेना ने बताया कि भरतमुनि ने नाट्य शास्त्र में रंगमंच अभिनेता अभिनय नृत्य गीत वाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से संबंधित सभी तथ्यों का विवेचन किया है। नाट्य शास्त्र के मुताबिक नाटक की सफलता केवल लेखक की प्रतिभा पर आधारित नहीं होती बल्कि विभिन्न कलाओं जैसे दृश्य रचना, वेशभूषा, संगीत, प्रकाश और कलाकारों के सम्यक के सहयोग से ही होती है।नाट्य कर्मी राजीव तिवारी ने कहाकि नाट्य के प्रमुख अंग चार हैं - वाचिक, सात्विक, आंगिक और आहार्य। उक्ति-प्रत्युक्ति की यथावत् अनुकृति वाचिक अभिनय का विषय है। 

विजयभान सिंह ने बताया कि नाटक का मुख्य उद्देश्य ऐहिक जीवन की नाना वेदनाओं से परिश्रांत जनता का मनोरंजन है। इसके प्रवर्तक स्वयं प्रजापति हैं जिन्होंने ऋग्वेद से पाठ्य, सामवेद से गीत, यजुर्वेद से अभिनय तथा अथर्ववेद से रस का परिग्रह कर सार्ववर्णिक पंचम वेद का प्रादुर्भाव किया। उमा महादेव ने सुप्रीत हो लोकानुरंजन के हेतु लास्य एवं तांडव का सहयोग देकर इसे संपूर्णता प्रदान की।

सुरेश श्रीवास्तव ने बताया कि संस्कृत भाषा महान कवि और नाटक कार कालीदास ने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं।
अभिज्ञानशाकुंतलम्, मेघदूतम, मालविकाग्निमित्रम कालिदास की प्रसिद्ध रचनाएं हैं। 

जौली घोष ने कहाकि कालिदास के परवर्ती कवि बाणभट्ट ने उनकी सूक्तियों की विशेष रूप से प्रशंसा की है। छठीं सदी ईसवी में बाणभट्ट ने अपनी रचना हर्षचरितम् में कालिदास का उल्लेख किया है। डा. ओमेन्द्र ने बताया कि कालिदास उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य के समकालीन हैं और उनके नवरत्नों में से एक थे।
गोष्ठी में अनिल निगम, महेश चंद, सम्राट यादव, श्रषि, प्रशांत, योगेश, आकाश, सुनीत व विकास ने भी विचार रखे।

No comments:

Post a Comment