Wednesday, September 6, 2017

ब्लू व्हेल गेम का यह वर्जन, इप्टा ने की निंदा

IPTA condemns brutal murder of Gauri Lankesh


National committee of IPTA condemns the shocking and brutal murder of senior journalist,activist and intellectual Gauri Lankesh at her residence at Bengaloru. 

IPTA is of the opinion that this is in  series of brutal murders of Dabholkar,Kalburgi, Govind Pansare by the sangh gang who are creating an atmosphere of terror and violence throughout the country.The voices of reason,rationality,humanity,peace and social justice are being systematically targeted. IPTA calls upon all peace loving rational people to fight this onslaught unitedly.It pays rich tributes to Gauri Lankesh who stood bravely against the forces of right reaction.

We resolve to carry on the struggle of all these martyrs who laid their lives in defense of rationality,freedom of expression and composite culture.

Ranbir Sinh, President.                                                    Rakesh, General Secretary


ब्लू व्हेल गेम का यह वर्जन

-कुमार अंबुज

यह 'ब्लू‍ व्हेल गेम' का वह वर्जन है जिसमें किशोरों और युवाओं को फँसाकर आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या करने का टॉस्क् दिया जा रहा है। इस खेल को खिलानेवाली देश में जो संस्था्ऍं हैं वे अपने प्रतिभागियों को इस कदर उत्तेजित और प्रेरित कर देती हैं कि वे हत्यारे को विजेता बन जाने के महान भ्रम में डाल देती हैं। लेकिन कुल मिलाकर यह एक आत्मघाती खेल है जिसमें समाज और देश अपनी ही हत्या पर उतारू हो गया है।

गौरी लंकेश के मारे जाने और कलबुर्गी, दाभोलकर, पानसरे की हत्याओं के बहुत पहले से ही कहता आया हूँ कि यह दौर नाजीवाद और फासीवाद की आधुनिक प्रतिलिपि है। इसका पूर्वाभास था ही कि प्रतिवाद-प्रतिरोध करनेवाले लेखकों-पत्रकारों-बुद्धिजीवियों पर हर तरह के झूठे मुकदमें दायर होंगे, हत्याऍं होंगी क्योंकि इससे ही उस आतंक का वातावरण ठीक तरह से रचा जा सकता है जिसकी जरूरत सांप्रदायिक प्रकृति की सत्ता को हमेशा होती है। यह सब उसके ऐजेंडे का विषय होता है। इस बारे में पहले भी कई बार, हम सबने लिखा ही है।

रचनाकारों के एक बड़े तबके ने लगातार इसका प्रतिरोध किया, यहॉं तक कि साहित्यं अकादेमी पुरस्कार सहित अन्य सम्मान लौटाने का एक प्रभावी उपक्रम भी हुआ। मगर अब वह प्रतिरोध कम होता दिख रहा है। उस पुरस्कार वापसी के बाद के दृश्य् में अनेक झंडाबरदार लेखक भाजपा सरकारों द्वारा आयोजित, प्रायोजित या समर्थित आयोजनों में हिस्सा  लेने के लिए तर्क बनाते रहे हैं, उत्कंठित हैं और तमाम तरह की ओट ले रहे हैं। अनेक चतुर्भुज ऐसे भी हैं जिनके तीन हाथों में कलम, किताब, प्रतिरोध का परचम है लेकिन चौथे हाथ में कमल के  फूल पर विराजमान लक्ष्मी का शुभ-लाभ लॉकेट भी लटका है।

और संभवत: इसी तसवीर के कारण प्रतिरोध, प्रतिवाद और भर्त्सना की सारी कार्यवाहियॉं निस्तेज हो जाती हैं। कई बार हास्यासस्पद भी।

गौरी लंकेश के ताजा घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में क्या इस पर विचार किया जाएगा कि जवाहर कला केंद्र, जयपुर में होनेवाले आयोजन का प्रतिभागी लेखक भी उसी तरह से त्याग करेंगे जैसे साहित्य आकदेमी सम्माान वापसी के समय वे सुस्पष्ट  और दृढ़ थे। क्योंकि केवल बयान जारी करना पर्याप्त नहीं होता, कर्म में भी कुछ पोजीशन लेना होता है। क्योंकि इससे एक प्रभावी संदेश जा सकता है। क्योंकि लेखक रिट्रीट नहीं कर रहे हैं, यह दिखना भी चाहिए।

लेखको-कलाकरों में हमेशा ही एक कलावादी समूह ऐसा रहता आया है जो इस सब तरफ से ऑंख मूँदकर बैठता है। उनकी बात भी आगे होगी ही।
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